दिवस नही उत्सव मनाएंगे
हर हाल में पृथ्वी को बचाएंगे,
जाने अनजाने हूई बड़ी अपराध
अब न कोई गलत कदम उठाएंगे।
लहलहाते खेत खलिहान होगें
मुस्कुराते पेड़ पहाड़ होंगे,
नदी नहर की चाँदी होगी
मीठे जल के झरने होंगे।
पशु पक्षी विलुप्त न होंगे
वन उपवन ही हर ओर होगा,
धरा बसंती फिर सुहाग गीत गाएगी
रुदन का एक कोना न होगा।
हवा मधुर होगी मधुर बरसात होगी
सूर्य के लालिमा का नया तेज होगा,
चिड़िया चहकेगी तितलियाँ नाचेगी
सोचों कितना सुंदर अपना धरा होगा।
हरियाली में
सावन के गीत गाएंगे
मिलकर सब मोद मनाएंगे,
अपनी धरती को अपने हाथों से
मिलकर हम सभी स्वर्ग बनाएंगे।
-Anant Dhish Aman