पहले जो लगाव था, न रहा आज कल
अपनों पे वो भरोसा, न रहा आज कल
मुस्तक़िल उदासियाँ छायीं हैं अब तो,
खुशियों का वो मंज़र, न रहा आज कल
न रहे लोग जिन्हें समझ थी दुनिया की,
रिश्तों का वो जलवा, न रहा आज कल
खिंच गयी हैं दीवारें कई अब तो बीच में,
यारो आँगन बड़ा सा, न रहा आज कल
जिस कल को ढूढ़ते हो न आएगा कभी,
कोई उसका नाम लेवा, न रहा आज कल
अब तो हर कोई मस्त है अपने में "मिश्र",
किसी का बोझ दिल में, न रहा आज कल
शांती स्वरूप मिश्र
🙏🏻