Hindi Quote in Poem by Umakant

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“ बे सहाय माँ “

मैं अपने दोस्तों से मिलकर ख़ुश होता हूँ
और उनके साथ करता हूँ बात घंटों तक फ़ोन पर
पिताजी के साथ उनके दोस्त आते हैं कई बार दफ़्तर से
गली-मोहल्ले के यार-दोस्त
कॉलेज के दिनों के दोस्त भी अक्सर आते रहे हैं घर
उन सबसे मिलते हुए मैं अक्सर
माँ की सहेलियों के बारे में सोचता हूँ
कहाँ होंगी वे सहेलियाँ जिनके संग माँ जाती होगी स्कूल
खेला होगा खो-खो और स्टापू
किसी फ़िल्मी हीरो के सपने जिनके संग देखे होंगे
गली-मोहल्ले की ज़्यादातर औरतें
माँ को दीदी बोलती हैं
क्योंकि माँ उन सबसे बड़ी है उम्र में
मैं तब सोचता हूँ जब माँ की सहेलियाँ
बुलाती होंगी माँ को नाम से
तब कैसे दौड़ पड़ती होगी वह
लेकिन न जाने कब से वह तरस गई है
किसी पुराने परिचित से
अपना नाम सुनने को
मैं ये सब सोचता हूँ हर बार माँ के लिए
और उदास होता हूँ
माँ हालाँकि उस उदासी से उबर गई है
जब वह उन्नीस बरस की आयु में
अपनी सहेलियों से दूर हो गई थी
राखी पर मामा के घर जाते समय
माँ हर बार लौट आती है अगले ही दिन
और तब मुझे बस यही लगता है कि
हर बार माँओं की ही क्यों लौटना पड़ता है
इस मर्यादा के साथ कि
जाओ अब वही है तुम्हारा घर
सौजन्य :- अंकुश कुमार 🙏🏻

Hindi Poem by Umakant : 111917853
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