उस शहर से यारों कोई अब न राब्ता रहा
ठीक ही हुआ की जाने का न रास्ता रहा
सहरा के जो बाग फिर सूखे है न पूछो कैसे
सूखते रहें हमारा जो न वास्ता रहा ,
मैं उसे खुदा के जैसे खोजने तो निकला था
जो नही मिला करेंगे क्या ये सोचता रहा
उम्र थी गुजर गई तो सोचिए बताइए
कौन थे करीब और किस्से फासला रहा
एक बार दोस्तों से कह दिया नही पीना
मेरी ओर वह मैं उनकी ओर देखता रहा