कभी लगती हो आधी पढ़ी रहस्यमयी किताब
तो कभी लगती हो तुम सादगी में भी लाजवाब
प्रिये तुम गुस्से में भी सुर्ख़ गुलाब लगती हो
फ़ुरसत से लिखा हुआ कोई जवाब लगती हो
आज भी तुम खूबसूरत लगती हो बेहिसाब
मेरे लिये ही तराशा जिसे वो हीरा तुम नायाब
मुस्कुराती हो जब तुम वक्त थम जाता है
तुम्हें देखकर तो आईना भी मुस्कुराता है