मुझे बारिश तो बेहद पसंद है
मगर हुआ यूं
अब थोड़ी सी कम भाने लगी
जब छत टपकने लगी
और यूं टपकते टपकते सारा घर बिखरा
मेरी सारी पुस्तके पानी पानी
मैंने रास्ते में जाते बुजुर्ग को देखा
जो इतनी बरसात में अकेले सब्जी लेने निकले
पानी के भराव से पैर फिसला
और हुई अनहोनी
इतनी तेज हवा और छाता बना कौवा
उस दिन न जा सका वह युवा
अपनी नौकरी की आखरी परीक्षा देने
जो अब किसी और को हो गई
बाढ़ आई पूरे गांव में
अब न रहे वह पशु जो जान से भी प्यारे
नही रही फसल, धान और न कोई मकान
सब कुछ बरबाद हुआ जाने ना कोई प्रमाण
अब इन बातो का क्या मतलब
जो हो गया सो हो गया
पर कभी कभी कहते है हम
प्रभु सृष्टि में काहे भरे पड़े है दुख ?
जवाब तो भिन्न होगे मगर
क्या परिवर्तन संसार का नियम नही !!
बस यही तो करते आ रहे हम
मुश्किल आई नही की प्रकृति और परिस्थिति को दोष
एक दिन जो बिना फरियाद जी लिया
तब भी सफल है सारा संसार
हा! कुछ होनी को नही बदला जा सकता
मगर कोशिशें करना क्यों छोड़ना ?!
और एक बात ! मुझे बारिश
पहले से ज्यादा भाने लगी है....
उर्मि