सर कफन बांध जो निकल पड़े।
फिर क्या आगे क्या ही पीछे ?
बस एक बात मन बांध लिए।
तो फिर क्या अंबर, क्या धरती नीचे ?
अब लड़ो , पराजय विजय बाद की बाते हैं।
वीर वही जो मुख में जहर दबाते हैं।
जो हुई विजय तो शंख नाद करवाऊंगा।
अन्यथा वहीं जहर निगल करके मैं प्राण गवाऊंगा।
नहीं जानते पार्थ पराजय क्या होती है ?
इसको परिभाषित करने वालो की किस्मत सोती है।
हा होता हूं नैराश्य
विकल हो जाता हूं मैं।
निशफलता को कोश बहुत इतराता हूं मैं।
माना निष्फल हुए मगर है कहां पराजय।
जीवन है सारांश, तुम्हारी सकल विजय।
-Anand Tripathi