“जिवनकी एक पहेली “


ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र?
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं
ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र?
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं

है ये कैसी डगर? चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं

ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने दिया
मौत से भी मोहब्बत निभाएँगे हम

रोते-रोते ज़माने में आए, मगर
हँसते-हँसते ज़माने से जाएँगे हम

जाएँगे पर किधर? है किसे ये ख़बर?
कोई समझा नहीं, कोई जाना नही

ऐसे जीवन भी हैं जो जिए ही नहीं
जिनको जीने से पहले ही मौत आ गई

फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं
जिनको खिलने से पहले ख़िज़ाँ आ गई

है परेशाँ नज़र, थक गए चारागर
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं

ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र?
कोई समझा...
🥵 🙏🏻

Hindi Tribute by Umakant : 111882879
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now