समय हर प्रहर पर पहरा ही रहदारी है
क्या इनाम दूॅं फिर छायी ए उदासी है
माहौल ए मोहब्बत हुई, जीत ही भारी है
क्या इल्जाम दूॅं फिर नई ए पारी है ।
बेवक्त, मुरव्वत बला खुशी कोई तुम्हारी है
क्या यही उजाले है, फिर तो मैययारी है
वकाला ए शहर, आवाजों में ये मुनादी है
क्या महलों, यों तलैया पानी ए बर्बादी है
नब्ज ए नजीर को खुद से हूं खुददारी है
क्या इल्जासे हमाम, परेशा ए तैयारी है
धोखे रहे है जहॉं में, आगे ए दुनियादारी है
क्या मकसुद गालमन करू ए ताबेदारी है
जग में जगमग, चिर चिन्तन दरख्तो छायी है
के साकिर डूबा, आग फिरसे ए लगाई है
वो माने ढंग भी निराला है, यही फसाना है
क्या यू लड़खड़ाना यही मर्ज ए तडपाना है
हर जीत पे मंजर देखा यू तो फिर मलाल है
धुप साये, बादल रिमझिम, जीना सवाल है
गजब पिरोया अंकित जीवन, परए खुन लाल है
बहस सब नाकाफि क्यु, बेमौत पर बवाल है
जीये हुक्मरांन इस शहर में, खाक सार तबाह है
ये जानी खुशी हे श्याम, सब कुछे वाहवाह है
जुगल किशोर शर्मा