मौत के दिन।
गिनते हैं प्रत्येक दिन मौत के दिन।
लंबे अरसे हो गये हैं अब गिनती के अक्षर भी
भूल गए हैं कब हुई थी शुरुआत मौत करें सफर
की शुरुआत की। जानते भी नहीं थै कभी कि मौत
का डर क्या होता है और कैसा होता है। मालूम होने पर खबरों को पढ़ते हुए मजमून से मिलान किया तो
पाया कि यह असह्य मानसिक और शारीरिक वेदना ईश्वर किसी को भी सपने में नहीं दे मेरी यही कामना है दिल से।
बस मनुष्य ऐसी वेदना को सहते हुए मौत
के मालिक की राह देखता है कि कब आयेगा और
अपनी जादूगरी की कारीगरी दिखा जाएगा। लेकिन
वो आएगा यही डर मनुष्य को जिंदा दफन करने के लिए काफी है। तिल तिल कर मारने के लिए यह
अचूक उपाय काफी है।
जिस दिन से उसने गिनती आरंभ की थी उस दिन से वो एक बुत की तरह सिर्फ धुंधली आंखों से देखता रहता है। आंखें उसकी दिन और रात भर खुली रहती थी। जाने वो आदमी घिसट घिसट कर कैसे जी रहा था। यह गम उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है। उसके अंदर की भावनाएं मिट गयी होती है वो बस
एक निर्रथक जिंदगी जीने का असफल प्रयास कर रहा है।जिसका जवाब ही नहीं है उसके पास। कर्म का
पहरा जबरदस्त लगा है और लगवाया गया है।
कौन और किस तरह तथा किस लिए यह कहना मुश्किल है। वो बस उसकी नज़र में है।जितनी मानसिक और शारीरिक यातनाएं वो झेल रहे हैं। गुरुदेव की कृपा से वो सांस ले रहे हैं। जो जीवन का आधार है। गुरुदेव की कृपा लगातार हो रही है। परन्तु काल का डंडा
अति भयानक त्रास दे रहे हैं। उसकी बातों में अब कोई भी सार नहीं है। बस सच्चिदानंद महाराज की असीम अनुकम्पा से ही जीवन का उद्धार हो सकता है। मौत का मंजर वो ही काट सकता है।
काल्पनिक। यह काल्पनिक चरित्र और घटनाओं का
समन्वय है। इसका किसी से भी कोई लेना-देना नहीं है लेखक जिम्मेदार नहीं हैं।
जय सच्चिदानंद जय।
-Anita Sinha