जब जन्म दे और छोड़ दे कोई।
जब भाग्य से और कर्म की एक जंग सी होई।
जब पाश यम का, कंठ को खींचे
ऐसा हो प्रतीत।
जब लगे की पुनर्जन्म है या है कोई गहरा अतीत।
तब सघन वन से हृदय की करुणा सुने कोई।
उठाकर गोद में तुझको, कहे डरना नहीं
इतिहास रचना है तुझे मरना नहीं।
लगाकर वक्ष से अपने तुझे सींचे,
पालकर तुझको बड़ा एक वृक्ष कर दीजे।
जो ये सब कृत्य करता है वो ही तो विधाता है।
असल में उस विधाता का ही ये रूप माता है।
-Anand Tripathi