विषय - हंसते जख्म
दिनांक - 23/04/2023
एक प्यारा सा जो रिश्ता था,
क्यों वो धूमिल अब हो रहा है।
घरौंदे में बैठा हुआ एक पक्षी,
इंतजार की बाट जोह रहा है।।
कब आओगे उससे मिलने,
यही सोच चलती रहती हैं।
थम न जाएं कहीं ये सांसे,
सांसे अपनी गिनती रहती हैं।।
छुपाकर अपने एहसासों को,
जख्म दबाना वह जानती है।
सबको अपना दर्द बताकर,
नुमाईश लगाना नहीं चाहती है।।
कुछ जख्म ऐसे होते जिंदगी के,
जो जीवन में कभी नहीं भरते है।
रह रहकर मस्तिष्क में आकर,
जख्मों को हमेशा ताजा करते हैं।।
नासूर हो चुके ऐसे जख्मों पर,
खुद को ही मरहम लगाना है।
दुनियां को कुछ पता न चले,
उसे मुस्कान के मुखोटे से छिपाना है।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री