जो घाव तुमने दिए,
मै उसे टटोलती हुँ रोज
मै नहीं चाहती वो भरे
उस घाव से उठती टीस ने ही तो,
मुझे शीखाया है,
आगे बढना
खुद से प्यार करना,
कठीन रास्तो पे चलना,
फीसल के उठना,
हार को स्वीकारना,
सही मायने में जीना।
हाँ कभी लगता है,
कोई उस घाव को सहलाए
थोडा सा मरहम लगाए,
पर एक घाव दिखता कहाँ है?
चांदनी अग्रावत " स्पृहा'