अर्पण तर्पण कुछ न जानू
पूजा , अर्चन कुछ न जानू
योग , साधना कुछ न आवे
मंत्र विधि मुझको न पाते
नही अकड़ संकल्प ने पकड़ा
न करने का भाव ही जकड़ा
न मंदिर मै तीरथ जाऊँ
कण्ठ मधुर न तुम्हे मनाऊँ ?
बैठी है पर मौन हृदय में
दृगंब कहे कुछ परिचय से
दूर कही है घर मेरा बिछड़ी
हूँ मैं जाने कब से |