हम रोज मिलते थे, वही रोज जहा से अक्सर ट्रेने गुजरती रहती है,जहा बहुत सारे लोग अपने सफर की शुरुवात करते है। जहा हररोज कोई बिछड़ता है, कोई मिलता है, तो कोई अत्यधिक भीड़ में खुदको संभलता है कोई जल्दी जल्दी में फिसलता है। हर एक मुसाफिर के ज्यादातर रास्ते यही से जाते है
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"Unkahe रिश्ते - 3" by Vivek Patel read free on Matrubharti
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