Hindi Quote in Poem by Urmi Chauhan

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मैं दुनिया देखने दर बदर भटकता फिरा
वजह कोई प्रबल न मिली

जब झांककर देखा घर में अपने
नफरत और कटुता भरी, बिन बातो की बेरुखी

मेहमान नवाज़ी करते मधुर, मन में भरा हो द्वेष
इकट्ठे रहकर हर किसीने, किसी से तकलीफ पायी

एक दूजे से ध्वस्त और दिखावे में ज़बरदस्त
बिन सोचे तानेबाजी से दिल को न संतुष्टि हुई

बड़ों की छाया चल बसी और वे हो गए मुक्त
अन्न से न पेट भरता उनका, मिलती जहर घोलकर तृप्ति

बिना शोक के चेहरे उनके, न ज़रा सी भीति
मन में अट्ट हास्य करता और बहार दुखड़ा रोना

प्रकृति नहीं बदलती चाहे हो शैया में पड़ा मुर्दा
लोगो से उम्मीद लगाकर बस मिली मुझे हताशा
इन खून के रिश्तो से खुदको बचाने की कोशिश है जारी मेरी


उर्मि

Hindi Poem by Urmi Chauhan : 111865851
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