गलतफहमी
जा रहे है सभी को छोड़कर,
देंखे कौन आवाज लगाएगा।
अपने और पराए का अंतर,
देखने को अब मिल जायेगा।।
कुछ दिन गायब क्या रहे,
अपनों ने ही भुला दिया।
देखते रहे राह अपनों की,
भुलाकर सबने रुला दिया।।
गलतफहमी हुई थी मुझको,
कि सब लोग अपना मानते हैं।
मेरी अनुपस्थिति न पाकर,
मुझे बुलाना भी जानते है।।
पर यह मेरा एक भ्रम था,
जो जल्दी ही टूट गया ।
हकीकत सामने आने पर,
सब कुछ पीछे छूट गया।।
नहीं चाहिए साथ किसी का,
अब अकेले ही चलना है ।
हमदर्दी और दिखावे से,
अब मुझे तो बचना है।।
कोई नहीं है आज किसी का,
सब स्वार्थ की दुनियां है।
स्वार्थ सिद्ध में लगा हर इंसान,
कह गई ये एक मुनियां है।।
मुंह देखा व्यवहार हो गया,
मिल जाओ तो राम राम।
भूल जाने पर वही इंसान,
लगा देता है वहीं विराम।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री