हो सके तो स्वार्थ......(गीत)
मात्रा भार 21
हो सके तो स्वार्थ, नफरत को जलाओ ।
फूल-सी मुस्कान, अधरों पर सजाओ ।।
राह में आती मुसीबत सर्वदा है,
पार करना यह हमारी भी अदा है।
लोग हों निर्भीक पथ ऐसा बनाओ।
फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।
जिंदगी कितने दुखों में जी रही है।
और दुख के घूँट कितने पी रही है।
दुश्मनों की आँधियों से लड़ रहे जो।
हो सके तो हाथ कुछ अपने बढ़ाओ,
खिंचतीं जातीं हैं दीवारें देश में ,
खुद गईं हैं खाइयाँ अब परिवेश में।
भारती-संस्कृति को अपनी न भुलाओ,
जो भरा है द्वेष दिल में वह हटाओ।
तिमिर छाया है घना, चहुँ ओर देखो,
मौत के पंजे फँसी है भोर देखो।
इस घड़ी में कुछ नया करके दिखाओ,
फूल-सी मुस्कान अधरों में सजाओ।।
जो समय के साथ आगे नित बढ़ेगा,
मंजिलों की सीढ़ियाँ निर्भय चढ़ेगा।
प्रगति के हर द्वार को मिलकर बनाओ,
फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "