छाया अंधेरा,
ना दिखे सवेरा।
जिंदगी की राहों में,
उलझनों का बसेरा।
रास्ते में रोड़ा है,
शोर थोड़ा थोड़ा है,
नाता ख्वाबों से जोड़ा है,
सपनो के सीने पे डर का हथौड़ा है।
किस्मत पे अब तो रोना न आए,
उलझ गया मन कुछ समझ न पाए,
करें तो करे क्या,
ये मसला गहेरा होता जाए।
ठोकरे खाई अबतक,
ये चलता रहेगा कबतक,
कुछ करके न दिखाऊं जबतक,
ऐसा ही चलेगा तबतक।
सुनो अभी नया दौर चलेगा,
कलम के आगे न कोई और चलेगा।
सुनो अब घर जाओ क्योंकि,
नया सवेरा और नया अब जोर चलेगा।
लि..भावेश एस रावल
-Bhavesh Rawal