#दर्दभरा काव्य”🙏🏻
# बिटियाँ का ददॅ ...✍🙏
आज सुबह से ही घर में
लोगों की चहल-पहल शुरू हो गई है
आज बीमार बाबा को देखने
सब सगे-संबंधियों की भीड़ इकठ्ठा हुई है
बिटियाँ सबकी जी हजूरी में लगी पडी है
पर उसके मन का ददॅ किसी ने ना जाना है
क्योकि आज घर में सबके साथ
वकील साहब भी तशरीफ़ लायें है
आज बिटियाँ के बाबा अपनी जिन्दगी की
लिखी वसीयत सबको सुनाना चाहतें हैं
बारह पन्नो की बाबा नें वसीयत बनवाई है
वकील साहब ने भी खूब अपनी कलम चलाई है
मंजूरी सबकी लेकर वसीयत सबको सुनाई है
बेटों को हर हिस्से बराबर बाँट दियें हैं
सबके हिस्से खेत,मकान और दुकान आये है
पर बिटियाँ के हिस्से में अब तक कुछ ना आया है
सुनकर वसीयत बिटियाँ को हुई हैरानी है
बेटों के हिस्से में सब कुछ आया है
पर बाबा नें बिटियाँ के नाम कुछ ना दिया है
समाप्त हुई वसीयत की कहानी ये अब तो
जैसे लगा बिटियाँ को अपने घर में पराई है
आई थीं देखभाल करने बाबा की
पर बाबा नें बिटियाँ को पराई ही मानी हैं
दुःखी मन से बांधने लगीं बिटियाँ सामान अपना
पर भाभियों की तो नजर टिकी है बिटियाँ पर
संदेह करके बात करती है आपस में
सो बिटियाँ के सामान की तलाशी ली जा रही है
शर्म से अपनी नजर झुकाती बिटियाँ
अपराधी सी बनकर खडी रही थीं अपने ही घर में
भाभियों नें जो खोला संदूक तो मिला उनकों
बाबा की फटी पुरानी डायरी और टूटी हुई ऐनक
साथ में मिलीं एक छोटी सी टूटी हुई छडी भी
जिनसे मिली थी निशानियां बचपन में
जो अब तक याद है बिटियाँ के दिल पर
बाबा से डरी-डरी रहने वालीं बिटियाँ
आज भाईयों के सामने असहाय खडी है बिटियाँ
पडा है भाईयों की जुबान पर है ताला
आज उनसे भी डरी सहमी सी है बिटियाँ
पर क्यु भूल जाती है भाभियाँ
वो भी तो किसी के घर की होती है बेटियाँ ..
किसे बताये अपना ददॅ ये बिटियाँ
सोचा आज भी बाबा नें पराई है माना
सच कहते हैं लोग जहाँ में
बेटियाँ तो होती है पराई...🙏❤❤
Meena Nagar ✍❤
11/1/2023