“मौत खड़ी है दरवाजे"
“यह कविता मैने खुद अपने ऊपर लिखा है
मैं पिछले 5 साल से एक गंभीर बीमारी
कैंसर से पीड़ित हूं ,और उसी से लड़ रहा हूं ,
फिलहाल डॉक्टर के निगरानी में हूं ,
और दवा चल रही है और अभी ठीक हूं ,
लड़ाई जारी है आपके प्यार और मोहब्बत
की अब बारी है ।बस विशेष इतना ही ।
सहय्दय धन्यवाद ।
हूं ,सानिध्य ,में उसके
जिसे देख ,दुनिया ,घबराती है ,
है खड़ा ,दरवाजे पर
जैसे कोई ,परिचित खड़ा हो ,
मुस्कुराता हुआ ,चेहरा देख मेरा
वो भी मुस्कुराता है ,
वो कोई ,और नहीं
साक्षात ,मौत खड़ा है ,
डालकर ,आंखों में आंख ,उसके
मैं भी ,निस्तेज खड़ा हूं ,
दुहाई ,कोई भी नहीं
मैं भी ,जाने को ,अड़ा हूं ,
वक्त ,अभी बाकी है
ऐसा वो बताता है ,
चलती रहती है ,मेरी कलम
देख ,वो घबराता है ,
लिख न दूं ,
दो ,चार बातें ,उसके लिए
यह सोच ,वह पछताता है ,
इसी ,उधेड़बुन में
कुछ वक्त ,मुझे मिल जाता है ,
आखिर करूं क्या ,मैं ,मेरे दोस्तों ,
कुछ वक्त ,उससे चुरा कर
आपके साथ ,बिताता हूं ,
मौत ,खड़ी है ,दरवाजे
कुछ वक्त ,उससे ,निकालता हूं ।
शीर्षक -"”
स्वरचित मौलिक रचना
राजेश कुमार सिंह