Hindi Quote in Poem by rashi sharma

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बंदिशें.....................................







ना ज़नजीर से बांधती हूँ,

ना ही तालों में बंद करती हूँ,

ना दीवोरों के पीछे धकेलती हूँ,

तुम थोड़े नियम तो बनाओं,

मैं यूँ ही ज़हन में काबिज़ होती हूँ......................................





हूँ तो सबके लिए मगर हर कोई मेरे लिए नहीं है,

मैं इम्तिहान लेती हूँ सख्त सा,

मुझे बर्दाशत करना सबके बस में नहीं है,

मेरा सवाल ऐ नहीं कि मुझे क्यों सहा जाएं,

मैं जानना चाहती हूँ कि मुझे बनाने वाला कभी तो मेरे दायरें में आएं...............................................



कभी पहनावे पर रोक है, कभी शिक्षा पर प्रतिबंध है,

जो अधिकार में है मेरे, उसी पर हर बार गहरी चोट है,

ज़िंदा छोड़ दिया है मगर सपनों का कत्ल कर दिया,

कोई आवाज़ उठाता नहीं मेरे लिए,

और मेरी आवाज़ को सुनने से ज़ालिमों ने मना कर दिया........................................................



स्वरचित

राशी शर्मा

Hindi Poem by rashi sharma : 111851098
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