बेहलाने को....................................
हम इंसान,
जन्म से लेकर अब तक बेहक रहे है,
वो बेहला रहा है हमें और हम खुश हो रहे है,
आदत बन गई है ऐ रस्म अब हमारी,
हम मरने की कगार पर है,
फिर भी उसका इंतज़ार कर रहे है................................
एक किताब,
कि करामात ने पागल कर दिया,
हर पन्नें में उसने हमें डूबों दिया,
वो तो खत्म हो कर बंद भी हो गई,
उसने इंसानी दिमाग में पूरी कहानी को खोल दिया,
कहीं भी चले जाए वो कहानी साथ जाती है,
एक कोरी कल्पना ने कुछ इस तरह हमें बेहला दिया...............................
ज़िन्दगी प्यारी बहुत है, इसकी तैयारी बहुत है,
परेशान हो या फिर तंग ऐ सबको बहला लेती है,
कभी - कभी होती है खिज इससे,
अगले ही पल ऐ कुछ ना कुछ कर मना लेती है,
बेहलाने को इसके पास लाखों हथियार है,
थोड़े सपने, कुछ ख्वाहिशें और हज़ारों झमेले तैयार है........................................
स्वरचित
राशी शर्मा