ज़िंदगी को सँभालकर रखना
कहीं जीवन - भँवर के बीच उलझकर न रह जाए
कच्चे धागों में गूँथी है ये, कहीं चटककर टूट न जाए
मशगूल रहे हम ज़िंदगीभर औरों को आईना दिखाने में
अक्स अपना देखकर जो लग जाते खुद को सँवारने में
सदा औरों की ही सुनते गए, जो कहते वो हम करते गए
खुद की भी सुनी होती तो जो करना था वो कर गए होते
दूसरों को जानने की कोशिश खुद से अनजान होते गए
खुद को ग़र जान गए होते तो शिखर पर पहुँच गए होते