जैसा तुम सोचते हो .....🤔
वैसा ही ये जगत अगर बन जाए
तो फिर जीवन में रोमांच न होगा
ग़र पथिक को पथ सुलभ मिल जाए
तो फिर नव - पथ का आग़ाज़ न होगा
तपिश में तपते तन को जो तरु शीतल कर जाए
वही वृक्ष निज छाँह में नवांकुर को न पनपने देता
सूरज की गरमी में तपकर ज्यों अंकुर प्रस्फुटित होता है
संघर्ष से ही जीवन में नव - सृजन अंकुरित होता है