भरोसा क्या करना गैरों पर,
जब गिरना और चलना है अपने ही पैरों पर ।
लोग घाव पर मरहम लगाने आयेंगे
और खंजर मार जायेंगे।
मतलबी है दुनिया सारी
मतलब की है बात सारी ।
किसे क्या पता कोन कब रूठ जाए।
ये शीशे, ये धागे, ये सपने, ये रिश्ते
किसे क्या खबर कहा टूट जाए।
-Rishabh Mehta