गुनाह बस यही रहा।
वो तड़पती रही मैं झांकता रहा।
मैं चाहता तो बचा लेता उसकी इज्जत।
इल्जाम मुझे न लगे इसलिए
मेरा हर कदम पीछे भागता रहा।
बहुत देर सबने थी तस्वीर खींची।
धरती गिरी उसकी तकदीर नीची।
उसने कहा हाथ को थामने को।
सभी सब लगे थे धुतकारने को।
मैं मरता क्या करता।
लजाता भी था और साहस भी भरता।
उसकी तड़प को किसी ने न जानी।
दिखी खाक होते मुझे वो जवानी।
-Anand Tripathi