आशाओं की नज़र............................
गरीबी अमीरी को और अमीरी गरीबी को देख रही है,
हरियाली हवा को और बंजर ज़मीन बादल को देख रही,
पुरी दुनिया ने ही आशा की नज़र का चश्मा लगा रखा है,
होने को तो सब कुछ है उनके पास,
मगर तमन्नाओं की चाहत और गहरी हो गई है..............................
माना की बस में नहीं लेकिन उम्मीदें पालने में कोई खर्चा नहीं,
सपना कौन सा रात में आने का किराया लेता है,
एक यहीं तो है जो एक रात में काया कल्प कर देता है,
चाहतों की बारिश रोज़ाना भीगो देती है,
कोई कितना भी फटेहाल हो वहां कहां गौर करती है................................
बंद कर दो गरीबी को अपनी कलम से निकालना,
वो कितने पानी में है ज़रा उनसे तो पूछना,
दाम में कम सही पर आँखों में चमक दुगनी है,
उनकी हंसी सबसे सच्ची है,
कल अच्छे की उम्मीद लेकर रोज़ाना गहरी नींद में सोते है,
थक जाते है पूरे दिन एक ही बात सुन कर,
सपने में ही सही वो उम्मीदों को और प्रबल करना चाहते है................................
स्वरचित
राशी शर्मा