Hindi Quote in Poem by F. S

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हो जाती हैं कुछ स्त्रियाँ खंडहर- नुमा मकानों की तरह,
आसेब - ज़दा हो जाता है उनका मन,
और आसेब - ज़दा जगहों पे कोई जाना पसंद नहीं करता,
वो सुहागन होते हुए भी, कभी कोई साज- श्रृंगार नहीं किया करती हैं,
माथे पे कभी बिंदी नहीं लगाया करती हैं,
कलाई में उनके कभी रंग- बिरंगी चूड़ियाँ नहीं होतीं,
माथे को शौक से सिंदूर से नहीं सजाया करती हैं,
बल्कि लगा लेती हैं इस लिए कि वो सुहागन हैं,
एक पतिव्रता नारी हैं,
कभी शौक से अपने हथेलियों पे मेंहदी नहीं रचाती हैं,
बालों की ख़ूबसूरत चोटियाँ नहीं बनाया करती हैं,
बल्कि यूँही बालों को समेट लिया करती हैं,
यूँ सा जूरा बना लिया करती हैं बालों की,
होठों पे अपने लिपस्टिक नहीं लगाया करती हैं,
कानों में ख़ूबसूरत बालियाँ नहीं पहना करती हैं,
हालांकि उन्हें बहुत पसंद होता है,
पैरों में पायल नहीं पहना करतीं,
हालांकि उन्हें बहुत पसंद होता है फिर भी,
हाँ, कभी - कभी ख़ुद को गहनों से लाद लिया करती हैं,
साज- श्रृंगार भी कर लिया करती हैं,
क्योंकि उन्हें दुनिया को दिखाना होता है खुद को
खुश व बाश,
पता नहीं क्यों करती हैं वो ऐसा,
शायद उनका मन खाली हो चुका होता है,
या शायद उनके मन के खालीपन को कोई
भरने वाला नहीं होता,
या शायद रह जाया करती हैं मन से अनछुई ही,
या शायद उन के मन में प्रेम- अंकुर
नहीं फूट पाते कभी,
या अगर फूटते भी हैं तो,
प्रस्फुटित नहीं हो पाते कभी।

Hindi Poem by F. S : 111828986
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