क्या ज़रूरी है...............................
खूबसूरती से क्या नवाज़ दिया,
लोगों ने गलत ही मतलब निकाल लिया,
नाम नाज़ों क्या रख दिया हमें तो नाज़ुक ही समझ लिया,
क्या ज़रूरी है जैसा देखते या सुनते आए हो वैसे ही बने रहना है,
थोड़ा तो बदलों अपने आप को फिर देखों तुम्हारी भी इज़्ज़त होगी या नहीं.........................
पर्दों में रहते है मगर आँखों पर पर्दा नहीं है,
समझते है सब कुछ इतने नादान भी नहीं है,
ज़्यादा कुछ नहीं चाहते बस आज़ाद रहना चहते है,
जैसे सांस लेते है सब वैसे ही हम भी लेना चाहते है,
क्या ज़रूरी है कि हर नज़र से हमें घूरा जाएं,
हर इंसान अपने में नायाब है तो क्यों भला नज़रों को कोई और चेहरा दिखाया जाए.........................
माना की ड़र जाते है पर भय है नहीं किसी का,
रोक लेती है परवरिश हमें वरना जवाब तो है हमारे पास हर सवाल का,
जीना चाहते है, सपने देखना चाहते है,
खुली हवा में हम भी परिंदा होने की कल्पना करना चाहते है,
नहीं लिखी जाती एक ही कहानी हर दफा,
हम खुद भी इस कहानी को बदलना चाहते है..............................
स्वरचित
राशी शर्मा