मैं सड़क या सियासत.............................
ना ख्वाब बचे, ना ख्वाहिशें,
ना नाम बचा, ना ज़रूरतें,
देखों सब कैसे मेरा इस्तेमाल करते है,
कोई दिखाता है नीचा, तो हज़ारों के नीचे हम दबे पड़े है..........................
क्या मज़ा आता है लोगों को मेरा मज़ाक उड़ा कर,
आवाजाही की जगह पर जाम लगाकर,
शर्मिंदगी होती है जब कोई ज़रूरतमंद मेरा इस्तेमाल नहीं कर पाता है,
भयावह होता है वो मंज़र जब कोई बीच सड़क पर दम तोड़ देता है............................
जब चलाएमान होता हूँ तो आज़ाद महसूस करता हूँ,
खुश होता हूँ जब मंच और हंगामें से दूर होता हूँ,
मंज़िल करीब लगती है जब हाज़री पर रोक लगती है,
अच्छा लगता है जब मेरी भी सुनवाई होती है...............................
गुस्सा आता है जब लोगों पर अभिमान का गुरूर चढ़ता है,
उनकी एक बात क्या मान ली अहंकार सिर पर हावी हो जाता है,
जब देखों तब गैरवाजिब फरमान सुनाते रहते है,
मेरी चुप्पी का हर कोई फायदा उठाते रहते है...............................
क्या हो अगर मैं भी किसी दिन अड़ जाऊँ,
हूँ तो मैं प्रक्रति का हिस्सा ही,
जो ज़रा सा खिसक गया,
तो ना जाने कितनो को निगल जाऊँ..............................
स्वरचित
राशी शर्मा