साथ तुम्हारे मैनें अपने,
कई सपनों को सजाया था।
तुम मिलों या न मिलो हमें,
उम्मीद को फिर भी जगाया था।।
थी अधूरी सी ये जिंदगी मेरी,
तुमसे मिलकर परिपूर्ण हुई थी।
जीने की चाह जब खत्म हो रही थी,
तुमसे मिलकर जिंदगी पुनः शुरू हुई थी।।
तुमसे मिलने की चाहत में,
मन में कितने फूल खिलेंगे।
तुम आओगे जब मेरे सामने,
यही सोच तुमसे गले मिलेंगे।।
थामकर एक दूसरे के हाथों को,
कदम से कदम हम मिलाएंगे।
नहीं छोड़ेंगे एक दूसरे का साथ कभी भी,
यही वादा हम दोनों कर जायेंगे।।
उनके कांधे पर सिर रखकर हम,
नदी किनारे बैठ जायेंगे।
नन्हें नन्हें कंकड़ों को फेककर,
खामोशी में आहट कर जायेंगे।।
डालकर उनकी आंखों में आंखें,
बहुत कुछ उन्हें बताना था।
जिस सुखों से हम वंचित है,
उस सुख को उनसे पाना था।।
प्रेम उन्हें करते हैं कितना,
बस यही उनको समझाना था।
अधूरी सी यह जिंदगी थी,
हमें पूर्ण उसे कर जाना था।।
पर नियति को यह मंजूर नहीं था,
इस लिए वो हमें मिल नहीं पाए थे।
भूली बिसरी यादें बनकर वो,
न जाने क्यों हमसे पीछा छुड़ाएं थे।।
हमने उनको अपना मानकर,
सब कुछ उनको बतलाया था।
उन्हें अपना साथी मानकर,
हक उन पर अपना जताया था।।
पर वह क्रोध और आवेश में आकर,
मधुर रिश्तों में कड़वाहट ले आए।
अनदेखा कर अब चलने लगे हैं,
जैसे नहीं रहे अब हम उनके साए।।
कड़वे और बेरुखी भरे शब्दों ने,
हमारे दिल को बहुत रुलाया था।
ह्रदय विचलित और अशांत हो गया,
पर उनको समझ नहीं आया था।।
सुख का साथी हर कोई बनता है,
पर हमें दुख का साथी उनके बनना था।
खुशियां बांटों या न बांटों हमसे,
पर गमों से गले उनके लगना था।।
अब छिटककर पराया कर दिया हमें,
बिना हमारा दोष बताए।
क्या हम इतने बुरे हो गए अब,
जो कांटा बन उनकी आंखों पर छाए।।
हमारे दूर हो जाने पर,
उनको खुशी अगर मिल जायेगी।
तो राह में उनके हम कभी नहीं आयेंगे,
बस गुमनामी से जिदंगी अब जायेगी।।
करते रहो अपने कर्तव्यों का निर्वाहन,
नजर कभी नहीं अब हम आयेंगे।
अगर कभी देखना भी चाहोगे,
तो धुंध में कहीं हम खो जायेंगे।।
नहीं रही जीवन की कोई आशा,
सब निराशा में अब बदल गया है।
जिसके दम पर आवाज उठाते थे,
वही आधार अब हिल गया है।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
कृपया इस रचना को कोई भी व्यक्तिगत रूप में न जोड़े🙏🏼🙏🏼
-किरन झा मिश्री