खुद के नक्ष.......................
किसी और की जीवनी पढ़, खुद की ज़िन्दगी बनानी है,
उसके मुकाबले ना सही, उससे नज़दीक बनानी है,
गलतियों के सागर से, सुधरने की सीख लेनी है,
अपना सपना खुद ही देखना है और हर छाप पर नज़र भी रखनी है............................
मेहनत की रेखा को खुद ही अमिट करना होगा,
ज़िद्द की लकीर इतनी गहरी हो कि अंतरिक्ष को भी इसका गवाह बनना होगा,
आसमान भी हमें देख इंन्द्रधनुष बिखेरेगा, सफलता तो होगी हमारी,
मगर वो भी जश्नन में भागीदार होगा............................
नश्र इतने साफ होंगे कि परछाई भी छुपा ना पाएगी,
रात की चाँदनी हमसे मिलेगी और सूरज की रोशनी सलाम भिजवाएगी,
मन हर्षित होगा जब हर कोई हमें बधाई देगा,
और हम उस वक्त भी यहीं सोचेंगे कि,
इस नक्ष की सफलता का मंज़र और कितना लम्बा होगा............................
स्वरचित
राशी शर्मा