मुसाफिर हूँ यारों............................
आज यहाँ, कल वहाँ, अगले पल ना जाने कहाँ,
जहाँ राह ले जाएगी, वहीं चलें जाएंगें,
किसको परवाह है मेरी, कौन है जो दुनिया में ढ़ुंड़ाई मचाएंगे,
मेरा सफर है, मुझे ही तय करना है,
आया था तन्हा मैं और तन्हा ही चलना है...............................
ना अफसोस है जुदाई का, ना यादों का ड़र सताता है,
रो लेता हूँ अकेले में, मुझ मुसाफिर को यहाँ कौन जानता है,
रास्तों का मुसाफिर हूँ, घर का हूँ राहगीर मैं,
ज़िन्दगी को जीना है, साँसों का हूँ बंदी मैं,
मेरा सफर कभी ना कभी तो खत्म होगा,
इस दुनिया से टूटकर, किसी और दुनिया से जुड़ेगा...............................
शांति की खोज में अपनी ही मौज में,
भीतर सुकून लिए अपनी ही खोज में,
आशियानें में नहीं, आशाओं पर ज़िंदा हूँ,
खुले आसमान तले, मैं रात से मुखातिब होता हूँ,
ना गिला किसी से, ना किसी से शिकायत करता हूँ,
आने - जाने का दौर है, इसलिए खुद में ही मगन रहता हूँ...........................
स्वरचित
राशी शर्मा