जीवन को जीने मे आभाव भले ही हो मगर ,
भाव है तुममे , आभावों की चिन्ता नही चिन्ता है
तो भाव की |
जो मिटे न कभी उसपर मिटना है , मिटने से पहले देखना है भेद और अभेद का परिवर्तन , देखना आखिर प्राण क्या है , क्यों आई भिन्नता इसमे , क्यों सर्वेश्वर असंतुष्ट थे , स्वंय को स्वंय से पृथक कर डाला | आखिर क्यों इतने है खेल रचे |