कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है अनजाने में अनावश्यक बहस अपने मित्रों को शत्रु की श्रेणी में ला खड़ा करती है । हम सोचते हैं कि हमें क्या फ़र्क़ पड़ेगा ,हाँ सच है कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा परंतु अनावश्यक सकारात्मक ऊर्जा को नकारात्मक रूप में बदल कर किसी अन्य को बुरा कह कर हम अपने अंतर्मन को अशांत ओर खुद को बैचैन तो कर ही लेते है ।हम अपने हितैषी को बचकानी हरकतों से न खोयें
✍कैप्टन
-कैप्टन धरणीधर