शिव का क्या मैं बखान करूं,
शिव है भोले भाले और तांडवहारी।
सच्चे भाव से प्रसन्न हो जाते,
और बुरे कर्म पर बन जाते है प्रलयकारी।।
शिव ही आदि,शिव ही अनादि,
शिव ही केवल अखंड है।
शिव से ही जीवन की शुरुवात है,
और शिव से ही जीवन का अंत है।।
आदि ,अनादि, अनंत,अखंड,
यही तो शिव के अलख रूप हैं।
सृष्टि बचाने को हलाहल पिया था,
नीलकंठ भी उनका ही स्वरूप है।।
ललाट पर त्रिनेत्र है देखो,
और जटाओं में है पावन गंगा।
मुख पर कितना तेज झलकता,
क्योंकि माथे पर है अर्द्ध चंदा।।
गले और भुजाओं में देखो,
सर्पो की कितनी माला है।
आसन भी व्याघ्र का है,
और गले में बासुकी को डाला है।।
शिव ही सत्य और शिव ही सुंदर,
शिव ही कालों के काल है।
शिव भक्तों का काल भी कुछ न कर पाए,
क्योंकि उनके साथ स्वयं महाकाल हैं।।
किरन झा मिश्री
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-किरन झा मिश्री