किंचित विचार
विवाहोत्सव हेतु पीले चावल की प्रथा पूर्णं होते ही लड़की के मामा ने चिंरजीवी को घूर कर कहा, हमारी बेटी घर के आलतू- फालतू कोई काम नहीं करेंगी, नौकरी नहीं करेगी। शब्दों की कड़वाहट के कारण वो दिन बड़ी उधेड़बुन के साथ बीते ,विवाहोत्सव का समय आया। समस्त मंगलकामनाओं सहित विवाह पूर्णं हुआ। पति-पत्नी का सामंजस्य भाव परिवार के लिए समृद्धि कारक बना। परिवार को प्रगतिशील बनाने के लिए दोनों का श्रम आवश्यक था । इस पर गहन विचार किया गया। नववधू सिलाई का कार्य करना जानती थी और वह स्वयं इच्छुक थी। उसके लिए एक दिन सिलाई मशीन खरीद कर घर लाते हुए रास्ते में वहीं वधू के मामा मिल गये । उन्होंने उसी समय फिर घूरकर कहा, हमारी बेटी आपके घर कमाई करने नहीं भेजी कि तुम सिलाई करवाओ, यह सुनकर चिंरजीवी उसी समय मुड़कर मशीन वापिस दे आया और किंचित विचार करते हुए, अपने भाग्य को कोसते हुए देर रात्रि तक चिंरजीवी घर पहुँचा।
-हेतराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ