"एक बात बता..... क्या तुझे भी ऐसा लग रहा है कि हम जितने आसानी से बच गए हैं..... इतनी आसानी से हम बच जाएंगे....या बच चुके हैं...." अभिनव, आदित्य के कान में कुछ घुस आया था।
" पता नहीं......मुझे तो इतना तो जरूर लग रहा है कि हम बचे ,नहीं बल्कि फंसे हैं.... अब तो यह हमारे पिताश्री ही जानेंगे..... उन्होंने हमारे लिए कौन सी सजा सोच रखी है ....तुझे कुछ अंदाजा है...." अभिनव ने अपने आगे बैठे हुए रणविजय को केहुनी से हिलाते हुए पूछा।
"चुपचाप शांति से दो मिनट नहीं बैठ सकते ...अगर इन लोगों ने हमारे लिए कोई सजा नहीं सोच कर ही रखी होगी तो तुम्हारी हरकतों से यह हमें सजा देने के लिए मजबूर हो जाएंगे....." रणविजय में थोड़े गुस्से वाले स्वर में आदित्य और अभिनव से कहा । रणविजय की बात सुनकर दोनों चुपचाप मुंह पर उंगली रखकर अच्छे बच्चों की तरह बैठ गए। उधर अदम्य पहले ही गौर से.. दरवाजे की तरफ देख रहा था। यह चारों राणावत हाउस में बैठे हुए...... अपने अपने पिताश्री के आने की
-Akash Sonkar