कविता की लहरें सदा, करतीं आत्मविभोर।
जीवन के संघर्ष में, प्रेरक हैं हिलकोर ।।
सागर की सिंह गर्जना, भरती है हुंकार।
लड़ें चुनौती से सभी, मिलती कभी न हार।।
शांत सरोवर दे रहा, जग को यह संदेश।
अंतस से उगते कमल, मोहक छवि परिवेश।।
राष्ट्र प्रेम अरु भक्ति का, वैचारिक संधान।
संस्था जागरण कर रही,मानव का उत्थान।।
बजे जागरण का बिगुल, मानव हित हों काम।
सजग रहें लेखक सदा, लेखन हो अविराम।।
यह कवियों का शंख है, गूँज रहा हर माह।
कवियों के रस धार से, छट जाते हैं दाह।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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