महुआ का दोष नहीं,
महुआ पीकर तुम पहले प्रेम के गीत गाते थे।
कोई कथा सुनाते थे, नाचते थे ।
थककर सो जाते थे।
पर महुआ पीकर अब तुम हिंसा करते हो,
हत्यारे हो जाते हो,
और सारा दोष महुआ पर डाल देते हो,
महुआ तो अब भी वही है।
पर क्या बदल गया है? तुम्हारे भीतर जो,
हर बार महुआ पीते ही बाहर आ जाता है !!