विषय-एक स्त्री की व्यथा
एक लड़की जब जन्म लेती है,
उस पर कई पाबंदियां होती है।
बचपन में ही उसे बतलाया जाता,
कि वो सबके लिए पराई होती हैं।।
जीवन मे कभी गलत न करना,
उसको यही तो बताया जाता।
सहन करने की शक्ति तुम रखना,
उसको यही समझाया है जाता।।
मधुर बोलना और सम्मान है करना,
उसको बचपन से ही बताया जाता।
घर के काम काज में उसको,
निपुण हमेशा ही बनाया जाता।।
दूसरे घर तुमको है जाना,
यही उसको समझाया जाता है।
मायके का मान कभी कम न हो,
यही दिलोदिमाग में बैठाया जाता है।।
बिटिया तुम ऐसा काम न करना,
माँ बाप पर कोई कलंक लगे।
करना ऐसा काम सदैव तुम,
घर की इज्जत हमेशा बनी रहे।।
तुम हो लड़की की एक जात,
ये कभी भी तुम भूल न जाना।
सफेद चादर सी होती एक लड़की,
उस पर कभी न दाग लगाना।।
माँ बाप की सीख को लेकर,
लड़की अपनी ससुराल जाती है।
सबको अपने मन से अपनाकर,
सबकी सेवा में लग जाती हैं।।
गलती हो जाये अगर कभी तो,
सास,ननद की उलाहना वो सहती।
मौन होकर वो सब कुछ सुन लेती,
पलटकर कभी भी उत्तर नहीं देती।।
जैसे सासू मां अपनी बेटी को,
लाड़-प्यार से समझाती हैं।
क्या वो अपनी बहू पर भी,
उतना ही स्नेह लुटाती हैं।।
सब कुछ सह लेती हैं स्त्री,
जब हमदम का साथ बना हो।
अभाव में भी जीवन जी लेती,
जब पति का सदा साथ बना हो।।
एक स्त्री अपने मन के विचारों को,
कब तक अंदर वो छुपाती रहे।
उसकी भी कुछ भावनाएं है,
किसको वो तो बताती फिरे।।
जब परिवार की बात आती है,
तब पति भी साथ छोड़ देता है।
घरवालों के खिलाफ न बोलने के लिए,
वह तो हाथ ही जोड़ लेता हैं।।
स्त्री अपने मन की व्यथा को लेकर,
अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं।
कोई तो उसे समझने वाला भी हो,
यही सोचकर वो रोती रहती है।।
मां बाप भाई बहन भी,
जब तक ही साथ निभाते हैं।
जब लड़की ससुराल में ही रहे,
तभी तक स्नेह वो लुटाते है।।
विवाह बाद तो मां बाप का कहना,
बेटी तुम जब भी मायके आना।
अपने ससुराल की बातों को,
मायके में तो कभी भी न बताना।।
जब भी तुम तो मायके आना,
हँसी-खुशी से ही घर आना।
लड़-झगड़कर ससुराल से,
पीहर को तुम भूल ही जाना।।
मन मुटाव तो चलता रहता है,
मां बाप का तो बस यही कहना।
तुम तो अपने ससुराल की इज्जत हो,
और वही का तो हो अब गहना।।
कहते है सबके तो यही मां बाप,
दोनों घरों की तो तुम ही लाज हो।
सब कुछ तुम तो मुस्कुराकर सहना,
बन जाना जैसे सबकी खास हो।।
व्याह दिया है तुमको हमनें,
हँसी-खुशी से ही यहां आना।
ससुराल छोड़ने की बात आये तो,
इस घर को तुम भूल ही जाना।।
चार कंधों पर डोली में भेजकर,
तुमको यहाँ से विदा किया था।
चार कंधों पर ही वहाँ से अर्थी निकले,
यहीं कहकर वहाँ से अलविदा किया था।।
इतना कहना मान लेना बिटिया,
तभी तुम समाज में रह पाओगी।
अगर विरोधाभास किया तुमने तो,
समाज के द्वारा ठुकरा दी जाओगी।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
-किरन झा मिश्री