पीढ़ी दर पीढ़ी
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मन की भावनाएँ कविताओं में उतर रही पीढ़ी दर पीढ़ी
फूल ,पक्षी ,धरती ,आकाश ,सागर, नदियाँ, पहाड़ ,जग बन रहे उसकी सीढ़ी।
युगों - युगों से इतिहास सोया पड़ा है इन कविताओं की बाहों में
लाँघ कर भी न लाँघी जा सके इसकी अद्भुत ड्योढ़ी।
एक अगोचर इसके तार जोड़ता एक बजाती रहती वीणा
कल्पना की गागर ले चलती रहती यौवना कभी न होती बूढ़ी।
दुनिया का हर रूप दिखाती प्रेम की सबको राह बताती
मन के गहरे सागर में उसने एक अनोखी दुनिया गढ़ी।
पीढ़ी दर पीढ़ी नित्य नए रूप में है सजती- सँवरती
साहित्य की यज्ञ-वेदी में इसकी लाखों भेंट चढ़ी ।
आभा दवे
12-3-2022
शनिवार