प्रबोधकुमार गोविल पुराने दोस्त हैं,परम संतोषी, चुपचाप सृजनरत। किताब भेजकर चुप बैठ जाते हैं, कोई उलाहना नहीं, कोई तगादा नहीं। जयपुर में रहते हैं लेकिन पूरा विश्व घूमने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने एक बेहतरीन उपन्यास लिखा है-- अकाब- यानी बाज यानी विनाश का प्रतीक।इस उपन्यास का बैकड्रॉप विदेश है और पात्र भी दुनिया भर से तलाशे हुए।इस अर्थ में यह ग्लोबल उपन्यास हुआ।कथा खुलती है न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टॉवर के विध्वंस के बाद के अवाक और मातम में डूबे समय में। जापानी युवक तनिष्क, उसके अंकल मसरू, मां आसानिका, मां के पति और प्रेमी, अंतरराष्ट्रीय स्तर के फिल्म निर्देशक अल्तमश, विश्व सुंदरी सेलिना नंदा और तनिष्क के जीवन के मायने बदल देने वाले शेख साहब और मध्यांतर के बाद आई अनन्या आदि चरित्रों को लेकर चल रहे इस उपन्यास का कैनवास विस्तृत होने के बावजूद जटिल नहीं है। तनिष्क की केंद्रीय कथा के समानांतर अनेक उपकथाएं भी उपन्यास में साथ चलती हैं।फाइव स्टार बन चुके सलून कल्चर का लेखक ने कमाल का रेखांकन किया है,ऐसा गहन अध्ययन से ही संभव है। बहुत बहुत तनाव और मुश्किल पलों से गुजरने के बाद उपन्यास का अंत तनिष्क और अनन्या के सहजीवन में खुल रहा होता है और हम इस अहसास से गुजरते हैं कि अकाब मानवीय जिजीविषा को परास्त नहीं कर सकता।यही इस उपन्यास का आशावाद है।