Hindi Quote in Romance by Prabodh Kumar Govil

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दिलीप- सायरा
आज इम्तहान का आख़िरी पर्चा था। फ़िर लगभग तीन महीने के बाद स्कूल दोबारा खुलने वाला था। मां दो दिन पहले ही लंदन आ गई थीं। उन्हें बिटिया को अपने साथ हिंदुस्तान वापस जो लेकर जाना था।
कार से उतर कर दौड़ती बेटी ने अपने हाथ में पकड़ा छोटा सा बैग उछाल कर इस तरह फेंका मानो ये बोझ बेवजह अब तक उसके कंधों पर लदा हुआ था।
लाड़ली बेटी मां से लिपट गई।
मां एक पल के लिए ये भुला बैठी कि बिटिया कहीं से कोई किला फतह करके नहीं लौटी है बल्कि दसवीं जमात की परीक्षा का पर्चा देकर आई है। मां ने अपनी आवाज़ में थोड़ी सी नाटकीयता घोली और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछने लगी- बता, क्या ईनाम चाहिए तुझे मुझसे?
बेटी ने पहले तो कुछ मुस्कुरा कर ध्यान से मां का वो दिलकश चेहरा देखा जिसे उसने सिनेमा के पर्दे पर भी पहले कई बार देखा था फ़िर उसी तरह इठला कर बोली- भूल गईं? मैंने आपको बताया था ना, इस बार मैं फ़िल्म की शूटिंग ज़रूर देखूंगी। मना मत करना!
- अरे बाबा, मना क्यों करूंगी। पर फ़िलहाल न तो मेरी कोई शूटिंग चल रही है और न ही मेरा मन है, गर्मी में चेहरा पोत कर कैमरे की तपती रोशनी से आंखें चार करने का। मां ने लापरवाही से कहा।
बिटिया ने तीखी निगाह से मां को देखा फ़िर उखड़ कर बोली- ओ हो, आप तो सब भूल जाती हो। मैंने कहा नहीं था कि मुझे "ज्वारभाटा" वाले दिलीप कुमार की शूटिंग देखनी है।
- यूसुफ की! चल, कोई शूटिंग चल रही हो तो देख लेना। मां नसीम बानो ने मन ही मन गहरी नज़र से बिटिया सायरा को देखते हुए कहा। वो कुछ सोच में भी पड़ गईं। बिटिया बड़ी हो गई है! अब गुड्डे गुड़िया से नहीं बहलने वाली। सोचती हुई मां- बेटी हिंदुस्तान लौटने की तैयारी में जुट गईं।

Hindi Romance by Prabodh Kumar Govil : 111772127
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