" मन मै धोखेबाज नही ! तुझमे उसको ही देखा था ,
वह प्रथम समर्पण प्रीत मेरी बाकी सबकुछ तो दूजा था , भाँति न मुझको चंचलता जिस रोग से खुद मै पीड़ित हूँ , औषधि चाहूँ मै विष थोड़े , बरबस मुझको तू क्यों मोड़े , कुछ इच्छाओ के तट बैठे कोई, प्यासा सागर छोड़े क्यों छोड़े , है अंश मेरा तो मिल जा न ! मन भाव हाथ तेरे जोड़े |" (अंश)
-Ruchi Dixit