पुरुष प्रेम में यौवन ढूँढता है
स्त्री प्रेम में बचपन
पुरुष प्रेम में स्वच्छंदता चाहता है
स्त्री प्रेम में बंधन
पुरुष प्रेम को अधिकार मानता है
स्त्री प्रेम को कर्तव्य
पुरुष प्रेम को ओढ़ता है
स्त्री प्रेम को जीती है
पुरुष प्रेम में यथार्थवादी रहता है
स्त्री प्रेम में स्वप्नशील
पुरुष प्रेम को नमक कहता है
स्त्री प्रेम को शक्कर
दोनों एक दूसरे से अलग हैं,
पर कमतर नहीं, पूरक हैं एक दूसरे के ।।
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