काश! मैं तुम्हे समझा सकता।
थोड़ा डांटता और फिर मना सकता।
क्यों रूठती हो इतना,
जानती हो जब कि बार बार,
मनाने मैं तुम्हारे पास,
इतनी दूर आ नही सकता।
बिना कारण के शक करना,
ठीक है प्यार तुमने भी किया था।
पर बार बार खुद को इतना,
नीचा मैं दिखा नही सकता।
इक बार तो मिस कॉल ही मार देती,
वो बात अलग है कि,
तुम्हारा कॉल अब मैं उठा नही सकता ।
प्यार दोनो ने किया था मगर,
समाज के ठेकेदारों के लिए तो,
इक बहाना ही काफी है।
कह दो उन्हे कि हमें ना रोके,
और न भड़काए इक दूजे के खिलाफ।
इकबार दिले बयां किया था,
तुमसे कभी प्यार का।
थोड़ा गुस्सा ही सही ,
दिखा कर माफ कर दो, इस पगलू को।
सच कहूं तो मुझे भी अब,
तुम्हारे बिना तन्हा,जीया नही जाता