Hindi Quote in Poem by Manoj kumar shukla

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शादियों का यह दौर.....

होटल में शादी हुई, घर अब हुआ उदास।
आँगन बैठा रो रहा, हर घर का संत्रास।।

सूना घर है चाहता, उत्सव तीज त्यौहार।
बच्चों की किलकार से, घर-सपना साकार।।

हर कोनों को देखते, बालक हुए जवान।
विस्मृत पल उनके रहे, समय देख हैरान।।

आम्रकुंज की पत्तियाँ, लटकें घर के द्वार।
आगत का स्वागत करें, हाथ जोड़ परिवार।।

हल्दी का उबटन लगे, महिला गाएँ गीत।
शहनाई के सुर सजें, सज-धज आएँ मीत।।

मंडप आँगन में गड़े, नीचे हो ज्योनार।
मान मनौवल बीच में, सँग गारी की मार।।

पुड़ी बिजोरे रायता, मिष्ठानों का दौर।
दही-बड़े सँग नाश्ता, खाएँ जी भर भोर।।

परिवारों के मिलन का, पक्का था गठजोड़।
नव-जोडे़ के मिलन का, नव पथ पर थी दौड़।।

लड़के-लड़की खोजते, जीवन साथी आज।
नहीं चाहिए अब मदद, उनको खुद पर नाज।।

प्री-मैरिज शूटिंग करें, होते फोटो शूट।
समय बदलता जा रहा, रहे किनारे टूट।।

बरगद की वह छाँव अब, बैठी घर के द्वार।
अपनी नाव चला रहे, खुद ही खेवनहार ।।

परम्पराएँ तोड़ते, संस्कृति का उपहास।
सीमाओं को लाँघने, कमर कसी है खास।।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111764555
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