आज में विस्मित आँखों से सोच रही हूं....
जिस शहर के बारे में कभी सोचा नही
वही शहर आज अपना सा लगने लगा....
दिल नही लगाना फिर भी वह हर लम्हा
खुशियों से भरता ही जा रहा है....
जिस शहर को छोड़ आये वो याद आता है
मगर ये शहर कोई न कोई बहाने से
खुशियों की सुर्खियां भेजता ही जा रहा है...
पता है ये अपना नही है फिर भी दिल्लगी
कर बैठने की गुस्ताखी कर रहे है....
निर्दोष बालक जैसा ये शहर बार बार बाहें
फैलाये अपनापन जताए जा रहा है....
अभी दिल भी पीछे पड़ा है
कहने लगा है बटोर ले अपने हिस्से में आई
खुशी को फैला दे आँचल अपना भी....
-Shree...Ripal Vyas